गुरु जी:कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन।।
सन्ता, इसका अर्थ बता?
सन्ता –
काम नही होने से
राधिका रस्ते पर घूम रही है
कदाचित उसे फल खरीदने होंगे!
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गुरूजी :
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन!
इसका क्या अर्थ है ?
सन्ता : मेरे अनेक जन्म हो चुके है पर तेरा जन्म चार जून को हुआ हे !
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गुरूजी : अरे मूर्ख…चल अब बता..
“दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तु जनकात्मजा” का क्या अर्थ है?
सन्ता : दक्षिण की ओर से आकर लक्ष्मण बोला.. जनक… तुम्हारा तो मजा है !
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गुरूजी- चल इसका अर्थ ही बता दे
” हे पार्थ त्वया चापि मम चापि…!”
सन्ता- हे अर्जुन तुम भी चाय पियो मैं भी चाय पीता हूँ।
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गुरूजी अभी तक कोमा में हैं।